तीनों देवो की आयु का
वर्णन
तीस काष्ठा = एक मुहूर्त (अड़तालीस मिनट
)
तीस मुहूर्त = एक दिन रात ( चौबीस घंटे
)
पन्द्रह दिन रात = एक पक्ष ( शुक्लपक्ष, पितरो का दिन ) , (कृष्ण पक्ष, पितरो की रात )
दो पक्ष = एक महिना
छः महिने = एक अयन ( दाक्षिणायन , देवताओं कीरात ) ( उत्तरायण
, देवताओं का दिन)
दो अयन = मनुष्यों का एक वर्ष
मनुष्यों का एक वर्ष = देवताओं का एक दिन रात
मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्ष = देवताओं का एक वर्ष ( इस वर्ष से युगोकी गणना की जाती है
)
चार युग होते है।
(1) सतयुग
(2) त्रेतायुग
(3) द्वापर युग
(4) कलियुग
( 1) सतयुग चार हजार वर्ष + सन्ध्या चार सौ
वर्ष + संध्यांश चार सौ
वर्ष = 4800
( 2) त्रेता युग।
- तीन हजार वर्ष + सन्ध्या तीन सौ वर्ष + संध्याश तीन सौ वर्ष = 3600
( 3) द्वापर युग – दो हजार वर्ष + सन्ध्या दो सौ वर्ष + संध्याश दो सौ वर्ष = 2400
( 4) कलियुग – एक हजार वर्ष + सन्ध्या सौ वर्ष + संध्यांश सौ वर्ष = 1200
चारो युगों का
बारह हजार वर्षों का प्रमाण होता है। ( चतुर्युग )
एक हजार चतुर्युग
= एक कल्प ( इसमें 14 मनु होते हैं)
इकहतर चतुर्युग = एक मन्वंतर
एक कल्प = ब्रह्मा
का एक दिन
जब आठ हजार वर्ष
बीत जाते है तो ब्रह्म का एक युग हो जाता है।
एक हजार युग का
एक सवन होता है।
जब तीन हजार सवनों
का समय बीत जाता है ब्रह्मा की आयु पूर्ण हो
जाती है।
इसी प्रकार
ब्रह्मा की सम्पूर्ण
आयु = विष्णु का एक दिन
विष्णु की सम्पूर्ण
आयु = रुद्र का एक दिन
जब रुद्र की आयु पूर्ण होती है तब शिव के मुख से एक ऐसा श्वाँस प्रकट
होता है जिसमें उनके इक्कीस हजार छः सौ दिन और रात होते है। उनके छः उच्छवास और निश्वास
का एक पल और आठ पल की एक घड़ी तथा साठ घड़ी का एक दिन होता है। शिव के उच्छवास निश्वास
अर्थात भीतर बाहर श्वास लेने की संख्या नहीं
है । इसी कारण शिव का उत्थान अक्षय है।
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