काल वचन शिव प्राप्ति (शिव को कैसे प्राप्त करे, तेज कैसे सिद्ध होता है )
शिवजी ने पार्वती जी
को बताया योगी वायु का पद कैसे पा सकता है,
श्रीमहादेव जी बोले
देहली में रखे दीपक की तरह, हृदय में स्थित वायु अंदर तथा बाहर दोनों तरफ प्रकाश करता
है। ज्ञान-विज्ञान
उत्साह आदि सभी वायु द्वारा प्रवृत हुआ करते
हैं। अतएव जिसने
पवन पर विजय पाली हो उसने संपूर्ण जगत पर विजय पा ली।
योगी को चाहिए कि जैसे लुहार फूँकनी मुख में रखकर वायु भरता हुआ अपने काम मे लगा रहता है उसी प्रकार वह भी वायु के भरने का अभ्यास करता रहे इसी अभ्यास करता रहे इसी अभ्यास के
पारिपक्व हो जाने पर उस योगी के हजारों नेत्र एंव हजारों हाथ पैर होते है फिर वह सब
ग्रंथियां घेरकर दस अंगुल ऊपर को उठ जाता है I
प्राणायाम वह होता है जिसमें सिर एवं व्याहृतियों के साथ गायत्री मंत्र जपते हुए प्राणवायु का निरोध हो इसी प्राणायाम
को एक बार करने से बड़ा फल मिलता है। जो सौ वर्ष तक तपस्या करके
कुशा के अग्रभाग से जल पीने वाले को प्राप्त होता है।
हे क्ल्याणी ! तेज किस प्रकार
सिद्ध होता है इसका वर्णन सुनिये I
योगी एक ऐसे स्थान पर जाकर
सोए जो एकांत हो जहां चंद्र सूर्य का प्रकाश हो उस मध्यम देश में निरालस होकर वह अग्नि के तेज को भोंहो के
मध्य में दखे । फिर हाथ की उंगुलियो द्वारा नेत्र बन्द करके एक घण्टा भर ध्यान परायण
रहे फिर उस योगी को अंधकार में ईश्वर की ज्योति दिखाई देती है। तब जाकर वह योगी परम
सिद्ध होता है। उसे कारण- प्रशम- आवेश -परकाया प्रवेश आणिमादि गुण सिद्धि तथा मन द्वारा
देखना छिप जाना आदि सभी कुछ प्राप्त हो जाते हैं तब परमात्मतत्व को जानकर मृत्यु से
छूट जाता है इससे बढ़कर कोई भी मोक्ष पाने का भिन्न मार्ग नहीं है। ध्यान योगीयो को तुरीय गति प्राप्त होती है।
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