पुराणों की उत्पति
यह वृतान्त व्यासजी के पुत्र
सूतजी ने ऋषियो को सुनाया था ।
पुराण क्यों हैँ ? श्वेत कल्प के समय वायु देव ने जो कुछ कहा था उन्ही शब्दों
तथा अर्थों से युक्त न्याय से पूर्ण शास्त्रो के अर्थों से शोभित यथा क्रम ही पुराण
कहे जाते हैं चार वेद ,छः शास्त्र मीमांसा ,न्याय ,धर्म शास्त्र,सभी पुराण इत्यादिको में
चौदह प्रकार की विद्याए है। फिर आयुर्वेद ,धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, अर्थशास्त्र ये चार उन चौदहों
में युक्त कर देने से विद्या अठारह प्रकार की हो जाती है। इन अठारह विद्याओं के उत्पादक
भगवान शंकर है।
संसार को बनाने के लिये प्रथम ब्रह्मा को उत्पन्न किया और ये अठारह
विद्याएँ ब्रह्मा को प्रदान की , ब्रह्मा की रक्षा के लिए
विष्णु को शक्ति प्रदान की विष्णु जी तो ब्रह्मा की रक्षा करने वाले मध्य पुत्र हैं।
ब्रह्माजी ने अठारह विद्याये पाकर पुराणों का विस्तार किया ।फिर ब्रह्माजी के चारों
मुखों से चार वेद उत्पन्न हुए , उसके बाद अन्य सभी शास्त्र
पैदा हुए ।
इन पुराणों को स्वयं ब्रह्मजी प्रकट करने वाले है । अतः इनका पढ़ना समझना
पृथ्वी के सभी लोगों के लिए कठिन था । यह देखकर परम कृपालु शंकरजी की प्रेरणा पाकर
स्वयं विष्णु द्वापर की समाप्ति के समय व्यास रूप मे अवतरित हुए । इन्होने ही वेदों
का विभाग करके शास्त्रों को संक्षेप रूप मे बनाया ।इसी प्रकार सभी द्वापर युगो के अन्त
मे विष्णु व्यास रूप मे प्रकट होकर वेदादि विभाग आदि आदि क्रिया करते है। फिर नवीन
पुराणों की रचनाए किया करते है।
इस द्वापर की समाप्ति में सत्यवती पुत्र कृष्ण द्वैपायन
नाम से व्यासजी प्रकट हुए है। वेदों को आपने चार भागों में विभक्त किया है। इसलिये
आपका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ है। फिर सामान्य रूप से पुराण रचना की है। संक्षेप
में सभी पुराणों के चार लाख श्लोक रचे । जब तक पुराणों को न पढ़ा जाय तब तक वेद उपनिषद
वेदो के अङ्ग पढ़ने में कुछ भी ज्ञान नहीं होता । पुराण संख्या अठारह हैं। जैसे
कि ब्रह्मा, पद्म, विष्णुजी, शिव,भागवत, भविष्य, नारद,मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मावैवर्त, लिंग,वाराह, कूबामन,र्म, मत्स्य, गरुण, ब्रह्माण्ड , स्कन्ध इस प्रकार ये अठारह
पुराण है।
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