Thursday, 5 October 2017

कालचक्र के निवारण का उपाय (मृत्यु पर विजय, नाद कैसे करते है )



कालचक्र के निवारण का उपाय (मृत्यु पर विजय, नाद कैसे करते है )


पृथ्वी जल तेज पवन आकाश या पांच भूतों का जब संोग होता है तब इस भौतिक शरीर की उत्पत्ति होती है| इसमें जो व्यापक आकाश है उसमें ही सब वस्तुएं लीन हो जाती है क्योंकि यह आकाश से ही होती हैआकाश के वियोग से विलीनोती है। संयोग से स्थिर होती हैआकाश से वायु उत्पन्न होती है वायु से तेज, तेज से जल,जल से पृथ्वी पैदा हो जाती है 
इस पृथ्वी के पांच गुण है जल के चार तेज से तीन वायु के दो और आकाश का एक गुण है। गुण तो केवल शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध इस प्रकार से पाँच है। जिस समय भूत अपने गुणों का त्याग करते हैं तो  प्राणी की मृत्यु होती है, जिस समय अपने गुण ग्रहण करते हैं तभी प्राणी की उत्पत्ति होती हैकाल को जीतने वाली योगी जन इन्हीं गुणों का विचार करते हैं 
योगी जिस यंत्र द्वारा किंवाध्यान द्वारा इस काल पर विजय पाते हैं वह इस प्रकार है


      
जिस समय सारी प्रजा सो जाए तो अंधकारमय स्थान पर बैठ कर कोई दीपक आदि न धरकर कोई सुन्दर आसन जमा कर योग करे । एक घंटा अपनी तर्जनी अंगुलीयों के साथ दोनों कान बन्ध कर ले तब उसे अग्नि द्वारा प्रेरित एक शब्द सुनाई देगा इसी प्रकार नित्य ही इसी क्रम को करें जब वह दो मुहूर्त तक करने लग जाए और यह शब्द सुनाता रहे तो वह पुरुष अपनी इच्छा अनुसार मृत्यु पाता है। यह शब्द  ब्रह्मरूप है। परम सुख देने वाला मुक्ति का कारण एवं अनश्वर उपाधि रहित है।जब इस प्रकार से उसको ज्ञान हो जाता है तब उसे सुख की प्राप्ति होती है सौ वर्ष की आयु का मनुष्य यदि शब्द ब्रह्म का अभ्यास करे तब वह आरोग्यता के साथ साथ मृत्युञ्जय प्राप्त कर लेता है।

 यह नाद अनाहत है जो उच्चारण नहीं किया जा सकता।उस अनहद नाद से नौ शब्द उत्पन्न होते है जिन्हे योगीजन पहिचान सकते है। वे यह है घोष, काँस्यश्रृंग,घण्टा, वीणा, वंशज, दुन्दुभि, शंख तथा मेघ गर्चित इन नौ शब्दों का तो त्याग करे तुड्कार शब्द का ही अभ्यास करें इस प्रकार के ध्यान करने वाला योगी कभी पुण्य पाप से लिपा मान नहीं होता। उसी से ही मृत्यु पर विजय पाने वाला शब्द उत्पन्न होता है वह नौ प्रकार का है।

  1. प्रथम आत्मशोधन घोषनाद है इसी से सभी व्याधियां दूर हो जाती है वंशी तथा आकर्षक उत्तम नाद है। 
  2. दुसरा कांस्य है इसी द्वारा प्राणियों की गति रूका करती है और यही विषभुतग्रह आदि को बांधने वाला है। 
  3. तीसरा श्रृडगं है यह तो शत्रुओं को मारण मोहन उच्चाटन आदि व्याभिचारों का करने वाला है। 
  4. चौथा घण्टा है उसको शिव कहा जाता है यह तो देवगणों को भी आकर्षित कर लेता है । 
  5. पांचवा बीणानाद है इसे ही योगीजन सदा सुना करते है। 
  6. छटा वंशज है इसके ध्यान कर्ता योगियों को सभी तत्त्व प्राप्त हो जाते है। 
  7. सातवाँ दुन्दुभि है इससे जरा मृत्यु निवृत हो जाते है। 
  8. आंठवां शंखनाद है इससे योगी अपनी झ्छानुसार रूप पा सकता है। 
  9. नवम् मेघ गर्जित है सससे योगियों के पास कोई भी विपत्ति नहीं आ सकती

जो नित्य निमम से एकाग्राचित होकर तुङ्कार का ध्यान किया करता है उस योगी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं रहता है।




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