कालचक्र के निवारण का उपाय (मृत्यु पर
विजय, नाद कैसे करते है )
पृथ्वी जल तेज पवन आकाश या पांच भूतों का जब संयोग होता
है तब इस भौतिक शरीर की उत्पत्ति होती है| इसमें जो व्यापक आकाश है उसमें ही सब
वस्तुएं लीन हो जाती है क्योंकि यह आकाश से
ही होती है। आकाश के वियोग से विलीन होती है। संयोग
से स्थिर होती है। आकाश से वायु
उत्पन्न होती है वायु से तेज, तेज से जल,जल से पृथ्वी पैदा हो जाती है।
इस पृथ्वी के पांच गुण है जल के चार तेज
से तीन वायु के दो और आकाश का एक गुण है। गुण तो केवल शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध इस प्रकार से पाँच है। जिस समय भूत
अपने गुणों का त्याग करते हैं तो प्राणी की मृत्यु होती है, जिस समय अपने गुण
ग्रहण करते हैं तभी प्राणी की उत्पत्ति होती है। काल को जीतने वाली योगी जन इन्हीं गुणों का विचार
करते हैं।
योगी जिस यंत्र
द्वारा किंवाध्यान द्वारा इस काल पर विजय पाते हैं वह इस
प्रकार है
यह नाद अनाहत है जो उच्चारण नहीं किया जा सकता।उस अनहद नाद से नौ शब्द उत्पन्न होते है जिन्हे योगीजन पहिचान सकते है। वे यह है घोष, काँस्यश्रृंग,घण्टा, वीणा, वंशज, दुन्दुभि, शंख तथा मेघ गर्चित इन नौ शब्दों
का तो त्याग करे तुड्कार शब्द का ही अभ्यास करें इस प्रकार के ध्यान करने वाला योगी कभी पुण्य
पाप से लिपाय मान नहीं होता। उसी से ही मृत्यु पर
विजय पाने वाला शब्द उत्पन्न होता है वह नौ प्रकार का है।
- प्रथम आत्मशोधन घोषनाद है इसी से सभी व्याधियां दूर हो जाती है वंशी तथा आकर्षक उत्तम नाद है।
- दुसरा कांस्य है इसी द्वारा प्राणियों की गति रूका करती है और यही विषभुतग्रह आदि को बांधने वाला है।
- तीसरा श्रृडगं है यह तो शत्रुओं को मारण मोहन उच्चाटन आदि व्याभिचारों का करने वाला है।
- चौथा घण्टा है उसको शिव कहा जाता है यह तो देवगणों को भी आकर्षित कर लेता है ।
- पांचवा बीणानाद है इसे ही योगीजन सदा सुना करते है।
- छटा वंशज है इसके ध्यान कर्ता योगियों को सभी तत्त्व प्राप्त हो जाते है।
- सातवाँ दुन्दुभि है इससे जरा मृत्यु निवृत हो जाते है।
- आंठवां शंखनाद है इससे योगी अपनी झ्छानुसार रूप पा सकता है।
- नवम् मेघ गर्जित है सससे योगियों के पास कोई भी विपत्ति नहीं आ सकती ।
जो नित्य निमम से एकाग्राचित होकर तुङ्कार का
ध्यान किया करता है उस योगी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं रहता है।
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