प्रणव पद्धति
एक बार पार्वती ने शिव से कहा कृपा करके मुझे बताइये प्रणव कैसे प्रकट हुआ, इसकी कितनी मात्रा है और
वेद के आदि मे यह कैसे कहा जाता है। इसके कितने देवता है, वेदादि की भावना किस प्रकार
की जाती है और उसमे कितने प्रकार की क्रिया है तथा इसकी क्या व्यापकता है इसकी कितनी
कलाये है और इसमें पंचात्मकता क्या है। इसके वाच्य वाचक का सम्बन्ध और स्थापना किस
प्रकार का है। और इसका क्या विषय है। इसका सम्बन्ध क्या है, प्रयोजन क्या है। और इसका
उपासक उपासना का स्थान, उपास्य वस्तु, उपासना का फल ,अनुष्ठान विधि ,पूजा का स्थान मण्डल ,उनके ऋषि और व्यास की विधि
का क्या क्रम हैं यह सब बताइये । तब शिवजी ने कहा वो इस प्रकार है।
इस ओंकार की प्राप्ति के लिए सबसे पहले कला का उद्धार करे । पहले आकार के आश्रित निबृत कला का उद्धार करे । फिर उकार में ईधन कला का मकार में काल कलाका, नाद में दण्ड और बिन्दु में ईश्वर कला का उद्वार करे । इस प्रकार पंचवर्ण रूप प्रणव का उद्वार होता है। यह तीन मात्रा और विन्दु नादात्मक का जाप तो महामुक्ति दायक है ।
ब्रह्मा से लेकर सब प्राणियो तक यह प्रणव ही सबका प्राण है और उकार मकार के क्रम से इसकी यह तीन मात्रायें हैं और फिर यही ॐ हो जाता है। यह ॐ वेदों के आदि कहा जाता है और वह ओंकारात्मक भी मैं ही हूँ इसी महान बीज के आकार के रजोगुण से ब्रह्मा और उकार जो उसकी प्रकृति योनि हैं उससे सत्युगण के पालन करने वाले हरि और मकार पुरूष वीज तमोगुण से संहार कर्ता शिव उत्पन्न होते हैं तथा जब इन साक्षात महेश्वर देवका तिरोभाव होता है। जो विन्दु रूप हैं और सब पर कृपा करने के लिए वही नाद रूप भी है। जब ध्यान में बैठे तब इन्ही नाद रूप शिव को मस्तक में विचार कर वहाँ ध्यान करे ! क्योंकि यह पर से परे और मंगल रूप है। यही सर्वज्ञ,सत्य के कर्ता, सर्वेश, निर्मल अविनाशी अद्वैत और परब्रह्मा हैं। वही आकार की अपेक्षा से व्यापक और आकर की अपेक्षा से ओंकार रूप में सब में व्यापक और उकार के नीचे के भाग में व्याप्त है। इस प्रकार की भावना करे । इसी प्रकार इन अनारादिक पाँच वर्णो में ब्रह्मा के स्वरूप को देखे । सद्य, बाममेव, घोर,पुरुष, एशान । यह क्रम से मेरी ही मूर्ति हैं।
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