स्थिर बुद्धि किसे समझना चाहिए ?
एक बार अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा स्थितप्रज्ञ किसे कहते है? उसको किस प्रकार पहचाना जाता है?
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मन की उत्कृष्ट आत्ममुख मैं विघ्न उत्पन्न करता है । जो सदा तृप्त है जिसका अंतःकरण आत्मज्ञान से परिपूर्ण होता है, जिसके मन की विषयों में हंसाने वाली कामनाओं से पूर्व निवृत्ति हो और जिसका मन आत्म संतोष अर्थात स्वानंद मे संलग्न हो उसे ही स्थिर प्रज्ञ समझना चाहिए।
नाना प्रकार के दुखों की प्राप्ति होने पर भी जिनके मन मैं विषाद उत्पन्न नहीं होता और जिसे विषय सुख की इच्छा नहीं है, उस सत्पुरुषों के अंतःकरण मैं से काम और क्रोध अपने आप दूर हो जाते हैं । फिर वह पूर्ण पुरुष भय का तो नाम तक नहीं जानता । इस प्रकार जो संसार से उदासीन तथा भेद बुद्धि से मुक्त हो जाता है, उसी को स्थिर बुद्धि समझना चाहिए।
जिस प्रकार पूर्णिमा का चंद्रमा अच्छे और बुरे लोगों को एक सा प्रकाश देता है, वैसे ही जो सब के प्रति समान दृष्टि रखता है और प्राणि मात्र के प्रति दयालु होकर बुद्धि भेद को त्याग देता है, जिसे अच्छा हो जाने पर किसी तरह का गर्व नहीं होता और बुरा हो जाने पर जो दुःख भी नहीं करता, ऐसा हर्ष विषाद रहित पुरुष सदा आत्म विचार मे निमग्न रहता है उसी को स्थिर बुद्धि वाला जानते है।
(स्त्रोत -ज्ञानश्वेरी गीता )
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