Wednesday, 15 November 2017

यथार्थ ज्ञान प्राप्त किए हुए पुरुष के लक्षण

थार्थ ज्ञान प्राप्त किए हुए पुरुष के लक्षण 
                       फल की आशा न रख कर जो मनुष्य शरीर, मन और इंद्रियों से कर्म का आचरण करते हुए भी अपने को अकर्ता मानता है, उसने कर्मातीतपन के सिद्धांत को बहुत अच्छी तरह समझ लिया है उसके लिए आत्म स्वरूप के अतिरिक्त जगत में अन्य कुछ शेष नहीं रहता अर्थात कोई कर्तव्य नहीं बचता जो भी यह सांसारिक दृष्टि से सब कर्म उत्तम रीति से करता रहता है ऐसा जान पड़ता है  इस प्रकार के लक्षण वाले मनुष्य को ज्ञानी समझना चाहिए 
               जिस प्रकार कोई मनुष्य नदी के किनारे पर जल में अपनी परछाई देखते हुए जानता है कि मैं उससे भिन्न हूं, अथवा नाव में बैठकर यात्रा करने वाले मनुष्य को किनारे पर लगे वृक्ष चलते जान पड़ते हैं पर वास्तविक दृष्टि से विचार करने पर वह जानता है कि वृक्ष अचल है इसी प्रकार सब कर्मों को करते हुए भी वे मिथ्या है और कर्म रहित परमात्मा ही मेरा स्वरूप है, यह वह ख़ूब समझता है 
              सूर्य अचल है, पर उदय अस्त होने से वह हमको चलता जान पड़ता है, उसी प्रकार शरीरधारी होने के कारण वह कर्म करता रहता है, पर परमार्थ दृष्टि से वह अपने को कर्म न करने वाला ही मानता है वह चाहे देखने में अन्य मनुष्यों के समान ही लगता है, पर वह मनुष्य नहीं है, प्रत्यक्ष परमेश्वर ही है, ऐसा समझना चाहिए जिस प्रकार सूर्य का प्रतिबिंब पानी में पड़ा हो तो भी उसमें सूर्य होता नहीं, उसी प्रकार ऐसा मनुष्य, मनुष्य रूप में पड़ने  पर भी उसमें सांसारिकता का स्पर्श नहीं होता ऐसा मनुष्य समस्त संसार को देखते हुए भी कुछ नहीं देखता सब कुछ करते हुए भी कुछ नहीं करता और सब वस्तुओं का उपभोग करता हुआ भी किसी वस्तु का उपभोग नहीं करता वह एक जगह बैठा रहता है, तो भी सर्वत्र गमन  करने वाले की समान होता है 
               जिस मनुष्य को कर्म आचरण करने में खेद नहीं होता (अर्थात् कर्म करता ही रहता है ) और कर्मफल इच्छा उत्पन्न नहीं होती उसी प्रकार में अमुक काम को करुंगा अथवा अमुक आरंभ किए काम को पूरा करना है ऐसा संकल्प जिसके मन को स्पर्श भी नहीं करता और ज्ञान रूपी अग्नि के मुख  में अपने समस्त कर्मों को डालकर जिससे भस्म कर दिया है ऐसे पुरुष को मनुष्य रूप में प्रकट होने वाला पर ब्रह्मा का अवतार ही समझना चाहिए 
            जो शरीर से प्रति उदासीन रहता है और फल की प्राप्ति के विषय में निष्काम भावना रखता है, साथ ही जो निरंतर आनंदस्वरूप में निमग्न होता है, जो संतोष के घर में बैठा हुआ आत्मज्ञान का पकवान खाते हुए भी अघाता नहीं, उसे सब प्रकार से मुक्त ही जानो। 

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