सामान्य दानों का वर्णन
बड़े बड़े दान तो सुपात्रो को प्रदान करने से ही परम कल्याण होता है I स्वर्ण, पृथ्वी गौ आदि का दान लेने देने वाले दोनों का कल्याण कारक है I
गौ, पृथ्वी, विद्या तथा तुलादान ये चारो दान सर्वोत्तम है I आये हुए याचको को दूध वाली गौ, सुंदर वस्त्र जूते अन्न भोजन आदि श्रद्धा पूर्वक अवश्य ही संकल्प कर देवे I ब्राह्मण तथा दुखी दिन पुरुषों को देने से आत्म कल्याण पाते हैं I
स्वर्ण, तिल, हाथी, कन्यादासी, घर, रथ, मणि,कपिला(भूरे रंग की गाय), गौ,अन्न ये दस प्रकार के महादान है इन्हें पाकर विद्वान ब्राह्मण दान देने वाले के साथ अपने आप को भवसागर से पार कर देता है I राजा रघु के समान स्वर्णमई पृथ्वी का दान सर्वोत्तम है I जो भी सोने में सींग रुप से खुर मढ़ाकर अनेको वस्त्र आभूषण अन्य वस्तुओं के साथ अच्छी गुणों वाले बछड़े समेत कपिला गाय को लेकर काँसे के पात्रों सहित सुपात्र कुटुंबी विद्वान ब्राह्मण को दान करता है वह लोक में तथा परलोक के मनोरथ पाकर अंत में मुक्ति का दान सबसे उत्तम है किसी के द्वारा दोनों लोगों में उसी वस्तु की प्राप्ति होती है I
इसी प्रकार तुलादान भी उत्तम है तराजू की एक पलड़े में बैठकर दूसरे को अपनी शक्ति के अनुसार किसी द्रव्य से भरकर अपने समान भार तोल दो, वहीं द्रव्य सुपात्र को प्रदान करें औरकहें कि मैं अपने भार जितना अमुख द्रव्य दान करता हूं मेरी बालक युवा वृद्धावस्था के ज्ञात अज्ञात सभी पाप भगवान शिव की कृपा से भस्म हो यह कह कर तुला दान द्रव्य सुपात्र ब्राह्मण को देवे इस प्रकार के तुलादान से पुरुष सभी पापों से मुक्त होकर चौदह इन्द्रो के राज्य समय तक स्वर्ग में निवास करके दिव्य भोगो को भोगता है I
गौ, पृथ्वी, विद्या तथा तुलादान ये चारो दान सर्वोत्तम है I आये हुए याचको को दूध वाली गौ, सुंदर वस्त्र जूते अन्न भोजन आदि श्रद्धा पूर्वक अवश्य ही संकल्प कर देवे I ब्राह्मण तथा दुखी दिन पुरुषों को देने से आत्म कल्याण पाते हैं I
स्वर्ण, तिल, हाथी, कन्यादासी, घर, रथ, मणि,कपिला(भूरे रंग की गाय), गौ,अन्न ये दस प्रकार के महादान है इन्हें पाकर विद्वान ब्राह्मण दान देने वाले के साथ अपने आप को भवसागर से पार कर देता है I राजा रघु के समान स्वर्णमई पृथ्वी का दान सर्वोत्तम है I जो भी सोने में सींग रुप से खुर मढ़ाकर अनेको वस्त्र आभूषण अन्य वस्तुओं के साथ अच्छी गुणों वाले बछड़े समेत कपिला गाय को लेकर काँसे के पात्रों सहित सुपात्र कुटुंबी विद्वान ब्राह्मण को दान करता है वह लोक में तथा परलोक के मनोरथ पाकर अंत में मुक्ति का दान सबसे उत्तम है किसी के द्वारा दोनों लोगों में उसी वस्तु की प्राप्ति होती है I
इसी प्रकार तुलादान भी उत्तम है तराजू की एक पलड़े में बैठकर दूसरे को अपनी शक्ति के अनुसार किसी द्रव्य से भरकर अपने समान भार तोल दो, वहीं द्रव्य सुपात्र को प्रदान करें औरकहें कि मैं अपने भार जितना अमुख द्रव्य दान करता हूं मेरी बालक युवा वृद्धावस्था के ज्ञात अज्ञात सभी पाप भगवान शिव की कृपा से भस्म हो यह कह कर तुला दान द्रव्य सुपात्र ब्राह्मण को देवे इस प्रकार के तुलादान से पुरुष सभी पापों से मुक्त होकर चौदह इन्द्रो के राज्य समय तक स्वर्ग में निवास करके दिव्य भोगो को भोगता है I
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