Saturday, 23 September 2017

कुबेर की कथा (KUBER)

कुबेर परिचय 


पहले जन्म का नाम : - गुणनिधि 
पिता का नाम : यज्ञदत्त (दीक्षित)

शिवलोक से लौटने के बाद का नाम :- अरिंदम (कलिंग देश का राजा)

मेघवान कल्प के प्रारम्भ के समय  नाम :- वैश्रवण
पिता का नाम :- तिश्रवा (ब्रम्हा जी के पुत्र पुलस्त्य के पुत्र )
(इस जन्म में अलकापुरी में शिव ने दर्शन देकर उसे वैश्वेशर नामक स्थान में कुबेर बनाकर नियुक्त कर दिया )
       कांपिल्य नगर में एक यज्ञदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था जो यज्ञ विद्या में बड़ा ही पारंगत था उसके एक गुणनिधि नामक पुत्र था, जिसकी आयु उस समय 8 वर्ष की थी, उसका यज्ञोपवीत हो चुका था और वह भी बहुत सी विद्या जानता था परंतु पिता से विपरीत  वह पुत्र जुआरी और गाने बजाने वालों का साथी हो गया था I  माता के  बार बार कहने पर भी वह पिता के समीप नहीं आता था और पिता तो घर के कार्य तथा दीक्षादी देने में व्यस्त में रहा करता था I जब घर आकर अपनी स्त्री से पूछता कि इस  समय गुणनिधि कहां गया तो वह कह देती  थी कि कहीं स्नान करने या देवताओं का पूजन करने गया होगा I निदान गिरह सूत्र के अनुसार दीक्षित ने उस पुत्र का विवाह भी करा दिया माता नित्यप्रति पुत्र को यह समझाती रहती थी कि तुम्हारे पिता वैसे तो बड़े महात्मा है किंतु उनका क्रोध  भी बड़ा विशाल है इसलिए तो अपनी बुरी आदतों को छोड़ दो अन्यथा किसी दिन तुम्हारे पिता उस चरित्र को जान लेंगे जो तुझको और मुझ  को दोनों को मारेंगे परंतु माता की इस प्रकार समझाने पर भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता था I
    एक दिन उसने पिता की हाथ की अंगूठी को चुराकर किसी जुआरी के हाथ में दे दी देवयोग से उसके पिता ने उस अंगूठी को जुवारी  के हाथ में देखा और उससे पूछा तो उसने कहा कि मैंने कोई तुम्हारी चोरी तो की नहीं है किंतु तुम्हारे पुत्र ने लाकर अवश्य दिया है मुझे यह अंगूठी ही नहीं बल्कि उसने जवारियो को भी बहुत सा धन ला कर दिया है परंतु आश्चर्य है कि तुम जैसे पंडित भी अपने पुत्र के लक्षणों को नहीं जान सके यह सुनकर लज्जा के कारण दीक्षित का सिर झुक गया वह सिर झुकाए और वस्त्र से अपना मुंह ढके हुए अपने घर गया और घर में जाकर अपनी पत्नी से बोला अरे ओ धूर्त पत्नी  बता तेरा लाडला  पुत्र कहाँ गया खेर वो कहीं भी गया हो किंतु वह मेरी अंगूठी कहां है जिसे उबटन  करते समय तूने मेरे हाथ से ले ली थी l उसने कहा मैंने कही रख दी थी इस समय स्मरण नहीं आ रहा है दीक्षित ने कहा सत्य है तू बड़ी सत्यवादिनी है इसी से तो जब जब मैं पूछता था कि पुत्र कहां गया तब तू मुझे अपनी बातों से बहला दिया करती थी पत्नी से ऐसा करते हुए यज्ञदत्त घर के अंदर चीजों को ढूंढने लगा किंतु जब एक भी चीज़ ना मिली क्योंकि पुत्र ने सब को जुए में दे डाला था तब सारा दोष अपनी पत्नी का जानकर उस दीक्षित ने हाथ में जल लेकर पुत्र और पत्नी दोनों को तिलांजलि दे दी और दूसरा विवाह कर लिया I
    जब यह समाचार दिक्षित के पुत्र को मिला तो वह घर छोड़ कोई अंत जाकर अपने भविष्य की चिंता करने लगा निदान भूख से पीड़ित हो संध्या समय वह  शिव मंदिर के पास जाकर बैठ गया उस समय एक शिवभक्त अपने परिवार सहित शिवपूजन के लिए अनेकों सामग्री लेकर मंदिर में आया हूं और जब वह शिव की पूजा कर चुका था तथा घर से लाए हुए पकवान  आदि उन पर चढ़ा चुका तब  भूख से पीड़ित यज्ञदत्त का पुत्र उसे ग्रहण करने के लिए मंदिर की आड़ में छिपकर देखता रहा और जब वे सब लोग पूजन कर  पकवान आदि चढ़ाकर किंचित विश्राम करने लगे तो उनकी आंखों में जपकी आते ही यज्ञदत्त का पुत्र धीरे से उठकर मंदिर में घुस गया और जितना भी भोग आदि चढ़ा हुआ था वह उस सब को लेकर चंपत हो गया किंतु उसी क्षण उसके पैरों की धमधमाहट सुनकर वे  सोए हुए लोग जाग उठे और बड़ी जोर से चिल्लाते तथा दौड़ते हुए उसका पीछा किया नगर के लोगों ने भी उसे बहुत खदेड़ा और नगर के रक्षको ने उस भागते हुए को ऐसा मारा की क्षण भर में ही मर गया I
    अभी तक उसने नैवेद्य  को खाया भी नहीं था कि इतने में यम  के दूतो ने आकर उसे बांध दिया परंतु ज्योही वे उसे ले जाना चाहते थे कि दिव्य विमान पर बैठे हुए त्रिशूलधारी शिव जी के पार्षद भी उसे लेने वहां आ गए और बोले हैहे  यमदूतों अब तुम इस परम धर्मात्मा को छोड़ दो क्योंकि अब इसमें कोई पाप शेष नहीं रहा याम के दूतो ने  शिवजी के गणों को नमस्कार करके कहा आप नहीं जानते यह बड़ा पापी और अपने धर्म कर्म से हीन कुल के आचरण से हीन अपने पिता का बड़ा शत्रु है यह उसने शिवजी का निर्माहुय भी चुराया है तब शिवजी के गण  यमदूतों से बोले यज्ञदत्त के पुत्र ने जहां बहुत से पाप किए है वहां इसने पाप रहित कर्म भी किए हैं जिनसे लिंग के सिर पर गिरती हुई दीपक की छाया का इसने  निवारण किया और रात्रि में इसने  अपना वस्त्र फाड़कर दीपक में बत्ती डाली l प्रसंगवश इसने शिव गुणों का श्रवण किया तथा ऐसे ही और भी अनेक धर्म कर्म इसने किए हैं व्रत रखकर इतने शिव जी का दर्शन तथा पूजन भी अनेको बार किया है इसलिए यह हमारे साथ ही शिव लोक को जाएगा और कुछ दिनों तक वहां रहेगा फिर पाप रहित होकर यह कलिंग देश का राजा होगा अतः अब तुम प्रसन्न होकर अपने लोग को लौट जाओ यह सुनकर जहां से वे  यमदूत आए थे वही अपने लोग को चले गए और जा कर सब समाचार यमराज को कह सुनाया तभी यमराज ने प्रसन्ता पूर्वक उनकी बात स्वीकार कर ली तत्पश्चात यमदूतों द्वारा छुड़ाया गया वह ब्राह्मण शिवगणों के साथ शिवलोक हो गया और वहां शिव पार्वती की सेवा से लौटकर कलिंग देश का राजा हुआ वहां उसका नाम अरिंदम हुआ I
   जब पहला कल्प हुआ  ब्रम्हा जी के पुत्र पुलस्त्य से तिश्रवा का जन्म हुआ जिससे वैश्रवण नामक पुत्र हुआ जिसने अलकापुरी को भोगा और  उग्र तप द्वारा शंकर जी की आराधना की उस समय "मेघवान" कल्प प्रारंभ हुआ था तब अकालपूरी अधीश्वर के उग्र तप को देखकर शंकर जी प्रकट हुए और उसे अपना साक्षात दर्शन दिया तो उसने कहा है हे  शिवजी आपके तेज से मेरे नेत्र बंद हो गए है अतः अपने चरण कमलों के दर्शन कर करने की सामर्थ्य मेरे नेत्रों के दीजिए आपको नमस्कार हैl यह यज्ञदत्त का वही पुत्र था जिसने की शिव जी के साथ पार्वती जी को देखा था तो उनके प्रति उसने क्रूर दृष्टि की तो उसका बायाँ  नेत्र फूट गया था l शिवजी ने पार्वती से कहा यह तुम्हारा पुत्र है और तुम्हें क्रूर दृष्टि से नहीं देखता है अतः तुम्हारी तपस्या की प्रशंसा करता है इसलिए मैं इसे निधीयो  का स्वामी बनाता हूं ऐसा कह कर शिवजी ने उसे धनपति कुबेर बना दिया और फिर उसे पार्वती से मिला कर कहा यह तुम्हारी माता है इसलिए प्रसन्नतापूर्वक इसके चरणों में प्रणाम करो तत्पश्चात शिवजी ने उनसे कहा हे देवेश तपस्वनी इस अपने अंगज  पुत्र पर प्रसन्न हो इसे आशीर्वाद प्रदान करो तब जगदंबा पार्वती जी प्रसन्न हुई और उस यज्ञदत्त के पुत्र को गुणनिधि से बोली हे वत्स तुम्हारी शिवजी में सदैव निर्मल भक्ति हो I परंतु तुमने जो अपने बाँये नेत्र से तिरछे  होकर मेरी ओर देखा है उससे  तुम्हारा बायाँ नेत्र  तो अवश्य ही नष्ट रहेगा I इसके उपरांत श्री महादेव जी ने उसे वैश्वेशर नामक स्थान में कुबेर बनाकर नियुक्त कर दिया और स्वयं ने उसकी अलकापुरी नामक महानगर के पास ही अपना कैलाश नामक स्थान नियत कर लिया I

(स्रोत : - श्री शिवमहापुराण ) 

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