ब्राह्मण जन्म कैसे मिलता है
ब्राह्मण जन्म मिलना तो कठिन हैl शिवपुराण के अनुसार शिव मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य एवं चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।
अब आप यह कहे कि नीच मनुष्य किस स्थिति को पाते हैं। पाप कर्म करके मनुष्य अपने स्थान से गिर जाता है इसी कारण श्रेष्ठ मनुष्य शुभ कर्म करके अपने स्थान की रक्षा किया करता है । जो जीव ब्राह्मण न होकर क्षत्रिय जन्म पाते है वह भी उनके दुष्कर्मों का फल है । इसलिए श्रेष्ठ मनुष्य का कर्तव्य है कि विपत्ति आने पर भी सहन करते हुए बुरे कर्मों में न पड़े इस प्रकार रहने वाले ही अपना स्थान बचा पाते हैं। जो शूद्र अपने कर्म उचित रीति से पूर्ण करते हुए तीनो वर्णों की सेवा में तत्पर रहते हैं वह शूद्र दूसरा जन्म वैश्य वर्ण में पाता है वैश्य होकर विधि पूर्वक धन खर्च करके अग्नि होत्र आदि कराता है वह फिर क्षत्रिय वर्ण में जन्म लेता है इसी प्रकार फिर वह क्षत्रिय होकर भूरि दक्षिणा वाले यज्ञ द्वारा परमात्मा की सेवा में तत्पर रहता है एवं यथोचित धर्म करता है संग्राम से कभी विमुख नहीं होता वह फिर ब्राह्मण जन्म पाता है। वह ब्राह्मण होकर यदि विधि पूर्वक यह करता है अपने धर्म में स्थिर है तो वह देवताओं को प्रिय होकर स्वर्ग पाता है।
अब आप यह कहे कि नीच मनुष्य किस स्थिति को पाते हैं। पाप कर्म करके मनुष्य अपने स्थान से गिर जाता है इसी कारण श्रेष्ठ मनुष्य शुभ कर्म करके अपने स्थान की रक्षा किया करता है । जो जीव ब्राह्मण न होकर क्षत्रिय जन्म पाते है वह भी उनके दुष्कर्मों का फल है । इसलिए श्रेष्ठ मनुष्य का कर्तव्य है कि विपत्ति आने पर भी सहन करते हुए बुरे कर्मों में न पड़े इस प्रकार रहने वाले ही अपना स्थान बचा पाते हैं। जो शूद्र अपने कर्म उचित रीति से पूर्ण करते हुए तीनो वर्णों की सेवा में तत्पर रहते हैं वह शूद्र दूसरा जन्म वैश्य वर्ण में पाता है वैश्य होकर विधि पूर्वक धन खर्च करके अग्नि होत्र आदि कराता है वह फिर क्षत्रिय वर्ण में जन्म लेता है इसी प्रकार फिर वह क्षत्रिय होकर भूरि दक्षिणा वाले यज्ञ द्वारा परमात्मा की सेवा में तत्पर रहता है एवं यथोचित धर्म करता है संग्राम से कभी विमुख नहीं होता वह फिर ब्राह्मण जन्म पाता है। वह ब्राह्मण होकर यदि विधि पूर्वक यह करता है अपने धर्म में स्थिर है तो वह देवताओं को प्रिय होकर स्वर्ग पाता है।
जिस फल की प्राप्ति अग्निष्टोयादि यज्ञ करने से नहीं होता वह फल संग्राम द्वारा प्राप्त होता है जिस क्षत्रिय को युद्ध में कभी पराजय नहीं मिली एवं युद्ध में ही शरीर छोड़ता है उसे अश्वमेध यज्ञ किए फल की प्राप्ति होती है वह सीधा स्वर्ग जाता है फिर उसका पुनरागमन नहीं होता। जो क्षत्रिय गो ब्राह्मण संत मंदिर के स्थान तथा अपने स्वामी के अर्थ युद्ध में प्राण छोड़ते हैं वह परम पुण्यात्मा है जो शत्रुओं को मारकर आप मर जाता है वह सदैव स्वर्ग में वास करता है। युद्ध सभी वर्णों के लिए सुखदायक है खासकर क्षत्रियों के लिए तो है ही। यदि वेदांत जानने वाला ब्राह्मण भी शस्त्र लिखकर मारने आवे तो उसे मारने से पाप नहीं ब्रम्ह हत्या नहीं वह तो युद्धभूमि है। यदि मारता हुआ पानी मांग बैठे उसे मार दें तो उसको ब्रह्महत्या लगती है। रोगी दुर्बल बालक स्त्री टूटे हुए धनुष वाले को मारने से ब्रह्महत्या होती है। युद्ध में शरणागत को कभी नहीं मारना चाहिए।